लघुकथा

चौकीदार रखो, २४ घंटे चाहिए, पैसे देने के टाइम पर नुक्स निकालो, पैसे खा लो। हेल्प रखो, साफ-सफाई पूरी करवाओ, पैसे मांगे, नुक्स निकालो, पैसे खा लो। बड़ी गाड़ी करो, शहर-२ जाओ, ड्राइवर-गाड़ी के नुक्स निकालो, पैसे खा लो। ऑफिस में लोग रखो, १०-७ का बोलो, लेकिन दो दिन तक काम करवाओ, हफ्ते के सात दिन में दस दिन का काम लो, लैपटॉप खरीदने का दबाव डालो, पैसे देने के टाइम, नुक्स निकालो, तनख्वाह मत दो, पर्स से पैसे मार लो, नौकरी से निकाल दो। भीख मांगने लग जाओ अगर कुछ और नहीं तो। ऑफिस किराये से लो, लोगों को बताओ हम बहुत अमीर है, तीन मंज़िल इमारत अपनी बताओ, पर किराया मत चुकाओ। अपनी पत्नी को घर से निकाल दो, दूसरी को बिना शादी रख लो, दुनिया के सामने बहन बना लो, अपनी माँ को रण्डी बोलो, पर औरों के चरित्र पर कीचड़ उछालो। खुद की छोटी बेटी हो, मगर दूसरी लड़कियों को काम करवाने के बहाने रात भर रोको, उनको सीसीटीवी से देखते रहो, उनका एमएमएस बनाने की बात करो, क्योंकि नीचता को उम्र का बंधन नहीं। बेईमानी करो, लोगों को बेवकूफ बनाओ, झूठ बोलो, फर्जीवाड़ा करो, धमकी दो, नियत खोटी रखो, पर अपने आप को ईमानदार, नैतिक और कर्मठ बताओ। मजाल कोई उंगली उठा दे? आखरी पर अंतिम नहीं। पूरे मोहल्ले के सामने पुलिस से जूते खाओ, जलील हो, पर बेशर्मी से फिर लग जाओ। क्योंकि दुनिया पैसे से ही तो चलती है।

शत्रुंजय

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