कंपनी के भिखारी

हाय क्या तड़प थी। ज़ुबान पर न आ रही, पर अंदर से चबा रही। लड़के ने काम का क्या मना किया, नौकरी छोड़ने की क्या बात कही, हाय हम सह न सके। ‘हम तो तुमको रखना ही नहीं चाहते थे’। बिल्कुल सही बात। सौ फीसदी खरी। तभी एक दिन सुबह 8 बजे बुला लिया, भले ही समय 10 बजे का हो। तभी रात को कभी 12, तो कभी 1, कभी सुबह के 4 या सुबह 6 बजे छोड़ना। तभी कहा जाता था कि हम नहीं चाहते की तुम कंपनी छोड़ो, तुम यहाँ बड़े महत्वपूर्ण हो। क्या तारीफें की थी तब। रखना ही नहीं चाहते थे, इसीलिए तो था यह सब।

तड़प तड़प के इस दिल से आह निकलती रही, ऐसा क्या गुनाह किया कि लुट गए। लगता है यह गाना इन के लिए ही बना था। पर मुँह पर फिर भी न आ सकी दिल की बात। कहना चाहते थे कि मत छोड़ो, पर मुँह से निकला ठीक है, हम तो रखना ही नहीं चाहते थे।

फिर निकला असली रूप। किया तो आईआईटी, पर बने भिखारी। लड़के ने भी पहली बार देखा कि कंपनी में भी भिखारी होते है। वो भी उस कंपनी का सीइओ। कंपनी क्या, कल की शुरू हुई स्टार्टअप है। घर की कंपनी, तो हम ही सीइओ, हम ही एमडी, हम ही एडमिन। काम टेक्नोलॉजी और राजनीति का मिलाजुला, पर न टेक्नोलॉजी समझ आई न राजनीति। लेकिन भीख में पीएचडी। शब्द तो दिल को खुश करने वाले। मैं तो छमिया हूँ, जो पैसे देगा उसके लिए नाचूँगा। अब कैसे बताये की नाचती तो तवायफ भी है, तो क्या खुद को तवायफ कहोगे। पर न छमिया हुए हम न तवायफ, हुए तो हम भिखारी। वो भी उच्च कोटि के।

चलिए और सुनते हैं। मैं बहुत खराब आदमी हूँ। यह तोे सिद्ध करके भी बताया। आईआईटीयन है भाई। जो करते है खरा करते है। ऊचांई पर जाएंगे तो बहुत ऊंचे, नीचता पर उतरे तो इतने की उसका भी कोई सानी नहीं। वैसे तो उस लड़के के जीवन मे कई आईआईटीयन आये थे। सब ऊंचे पहुँचे हुए। आज उसकी मुलाकात उससे हुई थी जो इतना नीचे उतरेगा की राक्षस भी शरमा जाए। ग़ुलाम भी एक पाल रखा था। वफादारी में तो वो कुत्ते से भी जीत गया। आखिर कंपनी में सीटीओ बनाया था। जूते उतने ही पड़ते थे ग़ुलाम जी को, पर स्वाभिमान कहाँ होता है ग़ुलाम का। तलवे चाटने का बोल दो बस, हरदम तैयार।

धमकियाँ तो वाह, क्या कहने! कॉलेज बंद करा दूंगा, यहाँ का कलेक्टर भी मुझसे ऐसे बात नहीं कर सकता। ये बात अलग है, कि न कोई कॉलेज बंद करवाया होगा न किसी कलेक्टर ने मुँह लगाया होगा कभी। एक पार्टी के उपाध्यक्ष को डिबेट की चुनौती दी, तो उस पार्टी के प्रवक्ता ने आकर बड़े प्यार से कहा कि जो डिबेट करनी है वो चुनाव आयोग से करो जाके। जलवे हैं भाई सीईओ साब के। भगवान भी कम हैं इनके सामने। मैं यह कर दूंगा, में वो कर दूंगा, मैं ऐसा कर दूंगा, मैं वैसा कर दूंगा, लगा कि आज वाकई छमिया बनके नाच दिखा रहे हैं सीईओ साब। बहुत बड़े-बड़े दुश्मन है मेरे यहाँ। लोगों के बड़े-बड़े पहुँचे हुए दोस्त होते है, इन के दुश्मन है। गुंडे इनके नीचे काम करते है, वो अलग बात है कि एक चौकीदार का ठेकेदार नीचे इनको धमकी और गालियाँ दे गया था क्योंकि होली के एक दिन पहले तक इन्होंने उसको पैसे नहीं दिये थे। पर धमकियाँँ इतनी की, फेहरिस्त बन जाये। बना भी दी। जो इनके लिये जान दे उसी से नाराजगी। जो जूते मारे उसको अपना मानते होंगे।

गालियाँ तो भाई इनकी पूछो ही मत। लड़की हो या लड़का, हम तो बेशर्म है। बाहर सफाई की बात करेंगे, पर अंदर जो कूट कूट के गंदगी भरी हुई है उसका कुछ नहीं। हम तो गालियां देंगे। प्रोग्रेसिव लोग है हम, लड़के-लड़की में भेद नहीं करते। अपनी गंदगी समान रूप से दोनों के सामने प्रकट करेंगे। जितनी इज़्ज़त कमाई थी इन दो-तीन महीनों में, हमने सारी गंवा दी, पर हम महान हैं।

झूठ बोलेंगे, पर मजाल की कोई हमें झूठा कह दे। रविवार को काम कराने का क्या अनूठा तरीका अपनाया था। राजस्थान के सीएम का फ़ोन आया है हमें, बुधवार तक उन्हें प्रोजेक्ट पूरा चाहिए, अब आज शनिवार है, अगर आज से काम करो तो 5 दिन है, सोमवार से करो तो 3 दिन, फैसला आपका। आहा। इनके लिए रविवार की छुट्टी कुर्बान की, होली-रंगपंचमी को बैठा, पर यह थोड़ी गिनना! हैं बिल्डिंग की तीसरी मंजिल पर, पर पूरी बिल्डिंग हमारी है। सामने वाला तो अंधा है, उसे थोड़े ही पता, कि तीसरी मंजिल हमने ली ही इसीलिए क्योंकि वो सस्ती पड़ती है। नीचे फ्लोर पर भले ही ताले लगें हो, नोटिस लगा हो, पर पूरी बिल्डिंग के मालिक हम है। दिल्ली के मुख्यमंत्री भी कम है यहाँ। मोजे जर्मनी के पहनते है, पहले बंदे मिलें है जो हिंदुस्तान के बाहर गए नहीं, पर मोजे जर्मनी से खरीदते हैं। और फूलन देवी चाची है इनकी। अब आप भोपाल के पास के, फूलन चम्बल की। उस लड़के के मन में आया कि कह दे कि इतनी भी न फेंंको की लपेटना मुश्किल हो जाये। पर फेंंके जा रहे आईआईटीयन।

कुछ बड़ा कर रहे है ये। और इतना बड़ा कर रहे है, कि अभी तक हो ही रहा है। पता नहीं कितना बड़ा कर रहे हैं। काम तो ऐसा कि जैसे पूरी दुनिया को प्रोजेक्ट यह ही दे रहे हैं। और ऐसा टॉप सीक्रेट, कि रॉ भी कुछ नहीं। हाँ, पर बताओ सबकोे। फैलाओ इस टॉप सीक्रेट काम को। ट्वीट करो, रिट्वीट करो, भाई विदेश में है तो उसे बोलो, उसकी पत्नी को बोलो, नहीं तो तुम गद्दारी कर रहे हो। दिल खुश हो गया।

न्याय में तो ज़िल्लेइलाही को भी मात कर दे। बात कहने का अवसर देते है, पर करना वही जो सोच लिया। हम ही सही है और कोई नहीं। गजब की है न्याय व्यवस्था! सामने वाला कंपनी तोड़ रहा है। वाह! मतलब हममें ये काबिलियत नहीं कि हम लोगों को कंपनी छोड़ने से रोक सके, पर कोई कंपनी छोड़ने की बात करे तो तेरी वजह से हुआ ये। हमारी कोई गलती नहीं। हम असफल हुए तो तू जिम्मेदार है, भले गोबर किया हमने हो।

भीख तो क्या अदा से मांगी कि सड़क का भिखारी भी कहीं न लगे। इसको जीन्स दिलाओ, उसे जीन्स दिलाओ, वाशिंग मशीन हमें दे देते, कंपनी को डोनेशन दो। 2 लाख के लैपटॉप से चले थे, 1000 की सेकंड हैंड वाशिंग मशीन पर आ गए। पर्स से पैसे निकाल लिए। कुल मिला के जो भी हो, हमें दो, हम महाभिखारी है। उस दिन उस लड़के को पक्का हो गया कि वो वाकई राजा है। उसकी नज़रों में, जितना गिर सकते थे, उससे कहीं ज्यादा नीचे गए। आईआईटीयन है। ज्यादा ही करने की आदत होती है। नीचता में भी आउट ऑफ बॉक्स थिंकिंग होती है, उसका यह विरला ही उदाहरण देखा उसने। कहाँ तो वो करियर बनाने आया था कहाँ यह नरक मिल गया। कहाँ तो उन्हें तनख्वाह देनी थी, कहाँ खुद नंगे हो गए सबके सामने। तड़प रहें है, नज़रों से नीचे गिर रहे हैं, पर भ्रम है कि मज़े ले रहे हैं। तड़प बड़ी है। जीवन के रंग है। देवता भी है यहाँ, इस जैसा घिनौना व्यक्त्वि भी। अगर नीचताओं का कोई चक्रव्यूह होता, तो ये उसके सातवें घेरे में खड़े होने वाले महारथी होते।

उस लड़के को उस दिन जीवन के ऐसे-ऐसे रंगों के दर्शन हुए कि क्या बतायें। वो तो शब्द कम पड़ गए, नहीं तो इनके तारीफ़ों के बहुत बड़े-बड़े पुल खड़े हो जाते। पर चलिए फिर कभी।

शत्रुंजय

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