केजरीवाल–भक्ति

नवकंजलोचन, कंजमुख, करकंज पदकंजारुणं। रामजी से शुरू हो कर, फिर राग दरबारी के रंगनाथ को सुशोभित करते हुए यह उक्ति आज दिल्ली के महान क्रांतिकारी, यशस्वी, धर्मरक्षक, दिल्लीश्वर मुख्यमंत्री पर आ टिकी है। जिस व्यक्ति के नाम ही अरविंद हो, वो तो नखशिख कमल होगा ही, इसमें कोई दो राय नहीं।


मुझ पर यह कई दफा ये आक्षेप लगाया जाता है कि मैं मोदी भक्त हूं। पर सच बताऊं आज ८ साल हो गए, पर मैने कभी मन की बात नहीं सुनी। मैं ढंग से घर वालों की नहीं सुनता तो मोदीजी की मन की बात क्यों सुनूं? पर जब मुख्यमंत्री महोदय बोलने आते है, एक सहज आकर्षण मुझे खींचता हुआ उनके पास ले चलता है। अरविंद केजरीवाल। इस नाम में अनंत संभावनाएं छुपी हुई है। शहद से मीठी वाणी, इतने अपनेपन से कही हुई बातें, आप को इस व्यक्ति के कोई दिव्य पुरुष होने का आभास दिलाते हैं। इतनी आत्मीयता, सहसा विश्वास नहीं होता कि इस पापी संसार में, कोई ऐसा व्यक्ति भी जन्म ले सकता है?


अभी–अभी इस महानुभाव का एक ताज़ा भाषण सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आप मानोगे नहीं, हाथ जोड़ के जैसे अर्जुन श्रीकृष्ण को सुन रहे थे, वही अवस्था मेरी हो गई थी। इनकी चुनाव गीता का अमृतपान मुझे सात समंदर पार हुआ, इस वजह से मैं खुद को भाग्यशाली समझता हूं। कभी–कभी ये मुझे विष्णु के ग्यारहवें अवतार लगते हैं (दसवां तो कल्की के लिए रिजर्व्ड है, इसलिए ग्यारहवें)।


पंजाब चुनाव बस अब कुछ दिन ही दूर है। अवधूत हो चुके दिल्लीश्वर, इन्होंने पंजाब के मुख्यमंत्री का दावेदार एक उच्चकोटी के व्यक्तित्व को बनाया है। जैसा कि उस दिन उनके मुखारविंद से सुना, की आप पार्टी ने एक सर्वे करवाया था, जिसमें २१ लाख लोगों ने हिस्सा लिया था। आहाहाहा। आप समझ रहे हो इसका मतलब? इतनी जबरदस्त फैंन–फोलोइंग है नरों में इस इंद्र की! और जैसा बताया गया, इस सर्वे को विभिन्न माध्यम से फलीभूत किया था और वैसे तो २ लोग ऑप्शन में रखे थे एक भगवंत मान और दूसरे नवजोत सिंह सिद्धू।


पर जैसा श्रीश्री ने कहा, कि भोली–मानस जनता, दिल्ली में आप का काम देख कर, दिल्ली के मुख्यमंत्री से ही आग्रह कर बैठी कि आप पंजाब के मुख्यमंत्री भी बन जाओ, पर जो व्यक्ति स्थितप्रज्ञ हो, उसके लिए क्या सत्ता, क्या कुर्सी? प्रभु को बोलना पड़ा, कि भाई, मैं दिल्ली का ही मुख्यमंत्री ठीक हूं। वैसे भी अभी तक २ प्रदेश का एक मुख्यमंत्री सुनने में नहीं आया, नहीं तो यह एक और क्रांति हो जाती।


मेरे हिसाब से तो केजरीवाल द्वारकाधीश कृष्ण से कम नहीं है, जो हर राज्य का उद्धार करते थे और फिर उस पर राज्य न करके उसी के उत्तराधिकारी को सौंप देते थे। केजरीवाल भी पंजाब का उद्धार करके, वहीं के संत भगवंत मान को सौंप देंगे। भगवान! कहां थे आप इतने सालों?


कोरोना के समय इनको अथक कार्य करते देखना था। पिछले साल प्रभु के मार्मिक अपील करते इतने विज्ञापन और इतनी बार देखने में आए, कि मैं एक बार तो खुद लट्ठ लेकर निकल गया था कि साला जहां कोरोना मिले, वहीं दफन कर दूंगा, पर हाय, वो वायरस तो हवा में था, कहीं से कहीं निकल गया और बाहर क्योंकि लॉकडाउन लगा हुआ था सो पुलिस के डर से मैं वापस घर लौट आया। नहीं तो एक मार्मिक अपील थाने से मुझे घर पर करनी पड़ती।


केजरीवाल अवधूत अवस्था को प्राप्त हो ही चुके हैं। बस भगवान बनने ही वाले हैं, पर अभी परमहंस होना बाकी है। यह युगंधर, बड़ा दूरदृष्टि वाला और पूरे देश का विचार करने वाला एक देवता है। वैसे दिल्ली को जिस उत्तम तरीके से संभाला है, उसके क्या कहने! क्या मुफ़्त नहीं है? बिजली मुफ्त, सफ़र मुफ्त, ये मुफ़्त, वो मुफ़्त। ऑक्सीजन घर–घर पहुंचानी थी, शराब की होम डिलीवरी करने लग गए। पहले–पहल मुझ नासमझ को ताव आ गया था इस पर, फिर श्रीश्री की दृष्टि से देखा और तब समझ में आया कि अब शराब से बड़ी ऑक्सीजन होती है क्या किसी मनुष्य के जीवन में? ये सौभाग्य की बात है कि ये महामानव अब संपूर्ण भारतवर्ष और उसके उत्थान की बात करने लग गए हैं। हमारे बीच आज स्वामी विवेकानंद फिर अवतरित हो गए हैं जैसे।


यह वो महामानव है जो, जो भी वस्तु नहीं चाहता, वही इसकी गोदी में आ गिरती है और प्रभु को विवश हो कर उसका वहन करना पड़ता है। जैसे अवधूत कभी कोई सरकारी पद नहीं लेना चाहते थे। लेकिन देखो, आज तीन–तीन बार मुख्यमंत्री बन गए हैं। छोटी गाड़ी चाहते थे, बड़ी में बैठना पड़ता है। अपने घर में रहने का विचार था, सीएम आवास में रहना पड़ रहा है।


दिल्ली को २०१८ तक लंदन और पेरिस बनाने चले थे, पर किन्हीं तकनीकी कारणों से २०२१ में वेनिस बना दिया। आहाहा, सड़कों पर नदियां बह रही थी। आपने कभी फ्लाईओवर से झरना गिरते देखा है? ये क्रांति सिर्फ एक युगपुरुष ही कर सकता है, कोई और नहीं। न भूतो न भविष्यति, ऐसा नज़ारा देखने को मिला था। चलो यूरोप तो पहुंच ही गए। इटली पहुंचे है, २०–३० साल दे दो तो फ्रांस और ब्रिटेन भी पहुंचा देंगे। इतना समय क्यों? अरे, आप समझते नहीं हो। पूरा धरती का भार उठाए यह दिल्लीश्वर, समस्त जम्बूद्वीप का उद्धार करने आया है। यह पूरे भारत को सूर्य जैसा देदीप्यमान बना देगा, और आप को दिल्ली का बस लंदन बनने का इंतजार है।


अभी पंजाब और उत्तराखंड, फिर गोवा, और फिर दूसरे प्रदेश, आज दिल्ली का मालिक, कल पूरे हिंदुस्तान पर शासन करेगा। जैसे आज हम मौर्य, गुप्त, चोला राजवंशों के बारे में पढ़ते और समझते हैं कि उस वक्त हम कैसे उन्नति के शिखर पर थे, वैसे ही, आने वाली पीढ़ियां केजरीवाल वंश के बारे में जानेंगी और जैसे आज हम राम और कृष्ण के भजन गाते हैं, वैसे ही इस अवधूत (परमहंस इन मेकिंग), के लोकगीत, भजन, किस्से और कहानियां और उदाहरण दिए जायेंगे।

शत्रुंजय

मोदीजी जवाब दो!

हमारे यहां ये फैशन है। ६ साल हो गए इसे शुरू हुए। पूरी दुनिया में भारत को एक ऐसा लोकतंत्र होने का सौभाग्य मिला है, जहां कहीं कुछ हो हमें सिर्फ एक व्यक्ति, मोदीजी से ही जवाब चाहिए। मसलन, आपको सुबह की चाय न मिली हो, ये क्या कर रहे हो मोदीजी? जवाब दो। आपको धूप चाहिए, बाहर बादल है, मोदीजी जवाब दो! इस सर्दी में धूप की बजाय बादल क्या कर रहे हैं?

आपको जवाब देना ही पड़ेगा। और आप हैं कि जवाब देते ही नहीं। विपक्ष तड़प-तड़प गया सवाल पूछते-पूछते। ऐसा कैसे चलेगा यहां। ये लोकतंत्र है, आपको हर बात का उत्तर देना ही होगा (पिछली सरकारों में तो घर में झगड़ा भी प्रधानमंत्री खुद आ कर सुलझाते थे)।

ये जुमलेबाजी की सरकार है। फेंकु जी प्रधान है। रोज का एक जुमला फेंका जाता है। और हाय रे हमारी भोली जनता, हर बार इनके जुमले में फंस जाती है और जीता भी देती है। अब देखो, बिहार में ही। वैक्सीन का जुमला क्या फेंका, सबने इन्हें वोट देकर जीता दिया। विपक्ष दल का नेता दस लाख नौकरियाँ देने की वाज़िब बात कर रहा था, देता नहीं देता, कैसे होता, वो बाद में देखा जाता, शायद; पर मज़ाल जनता ने इस सत्य पर भरोसा किया हो, जुमले पर भरोसा किया। हद है यार! और कितना फुसलाओगे मोदीजी? 

कुछ शब्द हमने सीख लिए हैं। फासिज़्म, हिटलरशाही, इमरजेंसी, नाज़ीवाद आदि। आपके मन का न हो, तो सरकार फ़ासिस्ट है, मोदीजी जवाब दो। सुप्रीम कोर्ट ने आपके मन मुताबिक फैसला नहीं दिया तो न्यायतंत्र की हत्या हो चुकी है, मोदीजी ने किया है, जवाब दो। प्रधान न्यायधीश भी मोदीजी के हैं। कल को इनकी राज्यसभा की सीट पक्की। मोदीजी मोदीजी न हुए भगवान हो गए। कुल मिला के तानाशाही हो गई है हिंदुस्तान में। मोदीजी जवाब दो।

हमारे यहाँ इमरजेंसी भी लगी हुई है। और कई तरह की लगी हुई है। जैसे अघोषित इमरजेंसी, राजनैतिक इमरजेंसी, आर्थिक इमरजेंसी। कहाँ है? सब तो आराम से होता दिख रहा है। क्या?? तुम्हें नहीं दिखाई देती इमरजेंसी? तुम भक्त हो, कैसे दिखेगी! है लगी हुई। 

१९७५ की इमरजेंसी भी इसके सामने कुछ नहीं थी। पंखे पर उलटा लटका कर पंखा चालू कर देना क्रूरता थी? गांव के गांव ज़मींदोज़ कर देना, पूरे विपक्ष को जेल में डाल देना फ़ासीवाद था? नहीं। आज है ये। ज़रा सा देश की खिलाफ क्या बोल दिया, एन्टीनेशनल हो जाते हैं। चिकन नैक को ब्लॉक करने का क्या बोल दिया, अंदर कर दिया सरकार ने। उच्चतम कोर्ट ने जिसे मौत की सजा दी, सारे सबूतों को देखने के बाद, उसे शहीद क्या बोल दिया, एक सीधे-साधे सच्चे विद्यार्थी को अपराधी बना दिया! ये भला कोई बात हुई? अगर पुलिस कोई करवाई करती है, कोर्ट के हिसाब से चलती है, तो ये फ़ासीवाद होता है और फलाने सन में नाज़ियों ने वहां की निर्दोष जनता पर ऐसा ही कहर ढाया था। मोदीजी में हिटलर दिखता है। मोदीजी इसका कब जवाब दोगे? 

वहां पाकिस्तान का मंत्री संसद में बोलता है कि हमने पुलवामा में घुस कर मारा, लेकिन यह कैसे संभव है? किया तो हमारे मोदीजी ने ही है, तुम उनका किया अपने सर क्यों ले रहे हो? उस मंत्री को भरपूर मौका दिया जाता है यह कहने का कि मैंने गलत बोला था, किया तो आपने ही है अपने लोगों के साथ। पर नहीं उसने नहीं बोला। कितना देवता आदमी है वो की किसी और का जुर्म अपने ऊपर ले रहा है। हिंदुस्तान का इतिहास देखो, हमने बाहर कहाँ-कहाँ जाकर हमले नहीं किये? मोदीजी को बचा रहा है वो।

एक अभिनेत्री का घर जबरन तोड़ा जाता है, वो फ़ासीवाद नहीं होता है। अखबार में उखाड़ दिया लिखा जाता है बड़े अक्षरों में, वो हिटलरशाही नहीं कहलाती है। एक पत्रकार के ऊपर एक स्कैम का गलत आरोप लगाया जाता है, काम नहीं बनता तो आत्महत्या का केस चलाकर उसको जेल में डाल दिया जाता है। एक जेल से दूसरी जेल ले जाया जाता है, तब जनतंत्र अपने उच्चतम स्तर पर होता है। एक नेवी के सेवानिवृत्त अफसर को कार्टून शेयर करने पर मारा जाता है वो नाज़ीवाद नहीं है। जो है वो मोदीजी ने किया है।

जब से आये हैं सत्ता में, तब से देश रसातल में जा रहा है। २०१३ तक हिंदुस्तान विश्वगुरु था, किसान आत्महत्या नहीं करता था, गरीबी का नामोनिशान नहीं था। भ्रष्टाचार क्या होता है, किसी को इसके बारे में कुछ पता नहीं था। कोई देश हिंदुस्तान का दुश्मन नहीं था, कोई युद्ध नहीं हुआ था २०१४ के पहले। हमें कभी किसी देश के सामने हाथ नहीं फैलाने पड़े थे। फसलें और अनाज भरपूर था। अर्थव्यवस्था में कोई सानी नहीं था हमारा। आतंकवाद शब्द तो वजूद में ही इनके समय आया।

ये तो ये मोदीजी क्या आये, सब बिगाड़ दिया। कहाँ देश था हमारा और कहाँ इन मोदीजी और संघियों ने पहुंचा दिया! इस विश्व ही नहीं, ब्रह्मांड में भी जहां कुछ गलत है, वह बेशक मोदीजी का किया धरा है और उन्हें ही इसका जवाब देना चाहिए। 

क्या कर रहे हो मोदीजी? जवाब दो।

शत्रुंजय

Veer Savarkar And The Misconceptions Surrounding Him

(Originally written in Sept 2018)

Few weeks ago, an actor by the name of Swara Bhasker, shared a meme involving India’s first PM Nehru and Veer Savarkar. In that meme, it showed that Savarkar have no role in freedom struggle.

I tweeted to Swara, asking her what she knows about Veer Savarkar. Of Course, I wouldn’t be getting any reply. I also said that she might term me as a troll. Good, no problem with that too. But, this is a question, what Savarkar did for India.

Look, neither I am a Sanghi, nor a BJP IT Cell person, nor a Bhakt, as a Muslim friend once termed me because I said I don’t like SRK. But I am a history buff. I like to read, understand things. I just happen to know Savarkar, like an average human do, that he was in Cellular jail. He lived till 1966 etc. I am writing about him only to let others know, that he is one of the most misunderstood person.

People say that he begged English to let him go, he was faithful to the Government and so. And not everybody knows him. So, if Swara shared a meme, what’s a big deal? Umar Khalid spoke about Savarkar in one of his tweets. Who is he? What does he know about Savarkar? Is he some literary person, who studied about Savarkar or anyone? I don’t think either of them knows Savarkar at all.

For it’s all trend now, to abuse people who stood for Hinduism, and turning the word ‘Hindutva’, itself in hateful word, hiding its true meaning. They are trying to sell the idea that Hindutva means, persons with swords and guns and knives attacking and killing everyone who comes in their way. Totally wrong.

In June this year, I went to Andaman and Nicobar Islands. The airport’s name in Port Blair is Veer Savarkar International Airport. I visited Cellular jail. Saw it with my own eyes, even felt that I am too a prisoner there. Small barracks, small alley, gallows, where people of my country got hanged by English, it is all very haunting. People lived there. They died there, martyred actually. Just one bowl for eating, no sanitation, no hygiene. If you want to go to the loo, only in the given time slot in the evening you are allowed. Not allowed to go out after 6 pm. If asked, they are beaten, sometimes even to death. People committed suicides, they were laden with tasks which passes any human power, they died doing it. All in all, they were all treated inhumanely & barbaric.

But who are these people? No one. Because, only Nehruji and Gandhiji had contribution in freedom struggle. They are the only patriots, India has ever produced. Is it so?

I asked Swara, if she knows who Madanlal Dhingra was. I bet she doesn’t. Shaheed Madanlal Dhingra assassinated Sir William Hutt Curzon Wyllie, after coming into contact with Veer Savarkar and Shyamji Krishna Varma in India House, 1905. He also joined Abhinav Bharat Mandal, founded by Savarkar and his brother Ganesh. Savarkar told Dhingra then, to not show his face to Savarkar before killing any British Official. Thus, Dhingra killed Curzon and a Doctor with seven bullets.

There is popular thing going on, that Savarkar sought forgiveness from English and begged to be spared. He although wrote letters during his term, but it was a covert thing. He was spending 50 year term in Cellular Jail, a double life imprisonment, where escape was impossible and the tortures were more than unbearable. He laughed at the Judge when he pronounced this sentence, asking if he was confident that he would last till then. He was 28 year old when he went to Cellular. The most tragic thing is that, for a long time Veer Savarkar didn’t know that his brother, Ganesh, too was there. He thought that Ganesh was with his mother. When, one day they met suddenly on the grounds of Cellular Jail, one should think what would have gone in the minds of two brothers then.

He filed a few mercy petitions, but the fourth petition was accepted. He and his brother moved to Ratnagiri Jail in 1921 and at last were released in 1924, on the condition of remaining forever unemployed. Although, he bargained for freedom, but writer named Jayant Joglekar, considered it as a ploy to indulge in the activities he loved. This is what I think too.

I think, living in jail, where he was unable to do anything for the freedom of India, he considered the option of asking mercy from British Government, seeking it on their terms better. So that, he could come out and start again to rout out the Britishers from his motherland. During his term, his focus shifted to Hindu culture and political nationalism. He wrote a book, Hindutva: Who is Hindu, which was taken out of prison hideously and got published by his supporters under name Maharatta.

Whatever the works of later life of Savarkar, there are things which cannot be refuted. Such as his contribution in the freedom struggle of India, as stated before and his works for the upliftment of Hinduism. In current times, talking about Hinduism, Hindutva, term you not only communal, Bhakt but if given chance the opposition try to destroy you in totality. Today, defintion of secularism is appeasement. For example, people oppose Manusmriti, did they read it? No. But Manusmriti should be burnt. That’s not sanity. But appeasement.

I think, that we should start something, which give an idea about the people who fought for us against the enemy. We should teach in such a manner, that people of India should know that it’s not because of only one family or two, we had what we had. It’s a cumulative effort from everyone and from all walks of life. We should let the current and future generations know that we are sitting on the treasure of rich culture. Our religion is not weak, its the most tolerant religion in this world and so, the most misunderstood.

I have no problem from those who abuse Savarkar, but will it not be better, if one should understand the facts before doing so? Else, it will only discredit you and not the one, who left the earth more than 50 years ago.

Shatrunjay

लघुकथा

चौकीदार रखो, २४ घंटे चाहिए, पैसे देने के टाइम पर नुक्स निकालो, पैसे खा लो। हेल्प रखो, साफ-सफाई पूरी करवाओ, पैसे मांगे, नुक्स निकालो, पैसे खा लो। बड़ी गाड़ी करो, शहर-२ जाओ, ड्राइवर-गाड़ी के नुक्स निकालो, पैसे खा लो। ऑफिस में लोग रखो, १०-७ का बोलो, लेकिन दो दिन तक काम करवाओ, हफ्ते के सात दिन में दस दिन का काम लो, लैपटॉप खरीदने का दबाव डालो, पैसे देने के टाइम, नुक्स निकालो, तनख्वाह मत दो, पर्स से पैसे मार लो, नौकरी से निकाल दो। भीख मांगने लग जाओ अगर कुछ और नहीं तो। ऑफिस किराये से लो, लोगों को बताओ हम बहुत अमीर है, तीन मंज़िल इमारत अपनी बताओ, पर किराया मत चुकाओ। अपनी पत्नी को घर से निकाल दो, दूसरी को बिना शादी रख लो, दुनिया के सामने बहन बना लो, अपनी माँ को रण्डी बोलो, पर औरों के चरित्र पर कीचड़ उछालो। खुद की छोटी बेटी हो, मगर दूसरी लड़कियों को काम करवाने के बहाने रात भर रोको, उनको सीसीटीवी से देखते रहो, उनका एमएमएस बनाने की बात करो, क्योंकि नीचता को उम्र का बंधन नहीं। बेईमानी करो, लोगों को बेवकूफ बनाओ, झूठ बोलो, फर्जीवाड़ा करो, धमकी दो, नियत खोटी रखो, पर अपने आप को ईमानदार, नैतिक और कर्मठ बताओ। मजाल कोई उंगली उठा दे? आखरी पर अंतिम नहीं। पूरे मोहल्ले के सामने पुलिस से जूते खाओ, जलील हो, पर बेशर्मी से फिर लग जाओ। क्योंकि दुनिया पैसे से ही तो चलती है।

शत्रुंजय

Al-Biruni: A Mysterious Scholar of the Past

Abu Rayhan Muhammad ibn Ahmad Al-Biruni or simply called Al-Baruni was an Iranian scholar. He was born in Biruni district in today’s Uzbekistan in 973 AD and died in Ghazni around 1050 AD. He was well versed in Physics, Astronomy and history. He was also fluent in languages like Sanskrit, Persian, Arabic, Khwarezmian, an East Iranian language along with Greek, Hebrew etc.

Al-Biruni followed Mahmud of Ghazni of Ghaznavid Dynasty, Afghanistan to India in 11th Century. During those times, tensions were high and lots of attacks were taking place on Indian soil from outer lands. Indians stopped trusting foreigners especially people who came with invaders, Al-Biruni managed to win the trust of Indian scholars then and obtained books from them which he then studied and translated into Arabic. 

He was influenced by the fact that Indian scholars are putting forward arguments in favour of earth being round, as it is the only reason for different hours in different places on earth. He not only wrote about the different kingdoms in India which were present then, with the remarkable works the rulers of these kingdoms were performing, but also documented the geography of India including the social and cultural aspects of Indians and the traditions and customs which were followed. These became historical documents which are referred by many today to learn about 11th Century India.

He was also very much interested in Hindu calendar. He exhibited great focus and researched in-depth in this topic. He converted the dates of Hindu Calendar into three calendars which were in use during then, namely, Arabic, Greek and Persian.

His understanding of Hinduism was impressive. He tried to write an unbiased account of events as happened in India then. Though he believed that not all the information he received was reliable or accurate.

He was taken to Ghazni by Mahmud and became an astrologer in his court. He spent a large part of his life in Ghazni, but came to India in around 1017 AD with Mahmud, and after getting influenced by the Hindu culture, wrote Tārīkh-al-Hind aka History of India. Apart from Hinduism, Al-Baruni also studied about religions like Zoroastrianism, Buddhism, Judaism, Christianity etc. 

He wrote many books on astrology. Translated Aryabhatt’s work and wrote commentary on it. He also translated Sage Patanjali’s works. This shows Al-Biruni’s interest in rich Indian culture of that era. 

His works are written in Arabic and Persian on topics such as Mathematics, Geography, Astrology, Religion etc. He is respected across countries with a movie made in Russia in 1974. Many use Al-Biruni’s works to fact check on the history of past centuries.

After his death, his works also became scarce. But hundreds of years later, his works were started to get founded and referenced by the Britishers, especially upon India, during 19th century.

 

Shatrunjay

तीन नीच – फ्रॉड लोगों की गाथा

अंदर बहुत दिनों से एक कुलबुलाहट मची पड़ी है, कि पिछली दफे इनकी तारीफ में कुछ शब्द कम पड़ गए थे, जो इस महान व्यक्तित्व के साथ बड़ा अन्याय था। मेरी आत्मा ने मुझे इतना कचोटा, कि न चाहते हुए भी इनकी गाथा लिखने को मुझे मज़बूर होना पड़ा। अब फ्रॉड लोगों को जितना नंगा करो उतना कम है। यहाँ तो तीन लोग है। और नंगा करने की इच्छा होती है। करते जाओ, करते जाओ, करते जाओ।

पिछले लेख से अब तक साल बदल चुके हैं, वो भी दो। परन्तु, इनका यशोगान कम होने का नाम नहीं लेता। आहाहा, कितना मनोरम दृश्य रहा होगा वह, जब इन्हें पुलिस ने ससम्मान उस इमारत से बाहर किया, जिसके मालिक होने का प्रचार इन्होंने बखूबी किया था। भई, आईआईटियन थे, यह बात अलग है कि यह कितना सच है, यह शायद ईश्वर को भी पता न होगा। झूठ की सतत चलने वाली फैक्ट्री और भिखारीपन की उच्चतम शिखर पर विराजमान रहने वाले महान व्यक्तित्व के धनी थे। बातें बहुत बड़ी-बड़ी करते थे। मजे लेने का बड़ा शौक था, फिर पुलिस ने और मौहल्ले वालों ने सार्वजनिक रूप से मजे लिए। इन चिंदीचोरों की कथा आज भी वहां काफी प्रचलित है।

एक कुत्ता भी पाला हुआ था। अभी भी साब का बड़ा वफादार होगा। क्यों न हो, कहते है ना, पानी से पानी मिले, मिले कीच से कीच, ज्ञानी से ज्ञानी मिले, मिले नीच से नीच? तो आप इन्हें उपरोक्त कोई भी संज्ञा दे सकते है। साब पानी तो आप पानी, साब नीच तो आप नीच। कहते है कुत्तों को घी हजम नहीं होता। बिल्कुल सही कहा है भाई। इन्हें सम्मानरूपी घी हज़म नहीं हुआ। इस कुत्ते ने साबित किया कि नीचता में यह भी कहीं कम नहीं है। और यह भी साबित किया कि कितना ही बेइज्जत करो, कितना ही जलील करो, इन्हें फ़र्क नहीं पड़ता। अब बेशर्म और नीच को मान क्या, अपमान क्या। जब कुत्ते बनने का गौरव मिला ही है तो कुकुरश्रेष्ठ बन के दिखाना है।

भाई, अब शर्म–इज्जत तो वैसे कुत्तों में भी होती है, पर यहां ये कुत्तों से थोड़े अलग है। अब मुंह मत खुलवाओ। कोड़ी की औकात नहीं है वैसे, करोड़ों में खेलने की बात करते थे। लालच था, कीचड़ में लोटने का बोल देते, वो भी कर देते। वफादार है। 

राजनीतिक पार्टियों के नेताओं से अपना फायदा निकालने के लिए भिखारियों की तरह भटके, भीख मांगी और जैसा कि होता है, नेताओं ने इन ऐरे-गैरों को पिछवाड़े पर एक लात मार के बाहर कर दिया। बकायदा अखबारों में छपा था कि किस तरह सड़क पर नंगे भूखों की तरह विधवा–विलाप कर रहे थे। फिर यहां भटके, वहां भटके, इसको टोपी पहनाई, उसके दर पर किसी कुत्ते की तरह पड़े रहे। जब उस लड़के के सामने भीख मांग के लोट लगाने लगा गए थे ८-१० लाख की गाड़ी के मालिक, तो इन नेताओं के सामने तो मुजरा किया ही होगा इस नचनिए ने, साथ में अपने कुत्ते को भी नचाया होगा। उसकी औकात तो वैसे भी अर्दली की तरह कर ही दी थी। नेताओं को चाय–पानी पूछ रहा है किसी घटिया ढाबे के वेटर जैसे। और इसकी मां को लगा कि लड़का बस सीएम बनने ही वाला है। तेरा लड़का फ्रॉड और ज़लील है, मूर्ख। जेल में रहना था इसे, अभी भी बाहर घूम रहा है।

दो कौड़ी के अखबारों में नाम-फ़ोटो-ख़बर क्या छप गयी, स्थिति वैसी ही हो गयी जैसे चिन्दी मिलने पर लोग बजाज हो जाते हैं। एक बड़े अखबार से बड़ी-२ बातें करने लग गए। खुद महानीच, झूठे और टुच्चे, पर उस अंग्रेज़ी अखबार से सही और धर्म का साथ देने की बात बोल रहे थे जैसे युधिष्ठिर के बाद ये ही धर्मराज पैदा हुए हैं। जैसे होना था, उस अखबार वाले ने कभी इनका नाम नहीं छापा और फिर वही सड़क के कुत्ते जैसी हालत, इधर-उधर भौंकते फिरते रहे।

सीबीआई से भी न डरने वाले, पुलिस के कुत्ता बनाने के बाद भोपाल भाग गए। वहां भी वही बेवकूफ बनाने वाला और फ्रॉड काम चालू रखा। ‘हिजड़ों की फौज से किले नहीं जीते जाते’ यह दूसरों को बोलने वाला फर्जी आईएएस, शायद यह खुद के लिए बोलता था, यह तब पता चला जब यह खुद और उसका कुत्ता, हिजड़े बन राजनेताओं के सामने मुजरे करने लगे,.पर फिर भी उन नेताओं ने कोई रोटी, किसी पैसे का टुकड़ा भी नहीं फेंका। लोल।

वैसे तो इनका सच ट्विटर पर निकलने लग गया था। इनकी कंपनी का नाम डालो और सर्च करो। ट्विटर यूजर्स ने जो इनको नंगा किया है वो कभी नहीं हुआ होगा। एक पते पर तीन कंपनियां चलने का जौहर दिखाया इन्होंने। फरेब, झूठ, धोखेबाजी, मतलबी, लोगों का पैसे खाने वाला नीच, एक की चार लगाने वाला, घटिया, छोटी सोच वाला टुच्चा। शब्द खत्म हो रहे हैं, पर इस की तारीफ नहीं। दो चेहरे वाला दोगला, सर्व ज्ञान का ढोंगी ज्ञाता, बेशर्मों का बेताज बादशाह, लिखते–लिखते उंगलियां थक जाएंगी पर इन लोगों की नीच–गाथा खत्म न होगी। गायब कराने की धमकी देते रहे, पर खुद एक्सपोज हो गए। इतनी गिरे हुए है, कि पाताल भी पहले खत्म हो जाता है।

फिर एक दिन पुलिस का आगमन हुआ इनके यहां। पूरे मोहल्ले में इनका बाजे–गाजे के साथ नागरिक सम्मान हुआ। वहां की सारी दुकानों से इनके इस सम्मान के नज़ारे देखने नसीब हुए। सुनने में आया कि बड़ा हंगामा हुआ था। उस दिन दिग्दिगन्त में इनके ख्याति फैली। जिस इमारत के ये सम्राट बने फिरते थे, उसके असल मालिक ने भी कोर्ट केस कर दिया था। क्योंकि उसका पैसा भी नहीं दे रहे थे। अब वो नासमझ मालिक, इस जैसे भीखमंगे कभी कुछ देते हैं क्या? इन को तो हराम का खाने की आदत होती है। ऐसे नीच ईमान का कहां खाते है?

वैसे एक बात और मानना पड़ेगा, क्या सपूत जन्मे हैं इनकी माओं ने। एक अपनी मांँ को वेश्या (बोला तो कुछ और था) बोलता है। दूसरा अपनी माँ को बेवकूफ बनाता है। और इसकी माँ मूर्खों जैसी अपनी इस नीच औलाद की तारीफ में कसीदे काढ़ रही है। इस जैसी घटिया और गंदगी में डूबी औलाद से तो बेऔलाद होना अच्छा। पर क्या पता वो कोख ही गंदी होगी जहां से ऐसे नीच जन्मते हैं।

लड़कियों को रात को रोकना, उनका एमएमएस बनाने वाले महारथी। नीचता में प्रथम पायदान पर टिकने लायक सर्वगुण संपन्न। पुलिस ने इन तीनों को कुत्ता बनाया, फिर जलील किया, हालांकि इनको क्या फ़र्क पड़ा होगा, क्योंकि इनके तो मुंह पर थूक दो तो उसको भी पानी बना कर गटक ले। स्वाभिमान? वो क्या होता है? इन नीचों को उससे क्या।

वैसे तो दिखावे के लिए बहन भी थी। पर चार दिन में सच दिख जाता है, देखने वाले को। अब सामने वाले दुकानदारों को सच दिख गया, तो दूसरे अंधे थोड़ी है। बहन थी या कुछ और, ये शोध का विषय है। दिन में भैया और रात में सैय्यां वाला सिस्टम होगा। बराबर की झूठी लड़की। मानना पड़ेगा, गंदगी में तीनों में प्रतियोगिता हो रही हो जैसे।

दूसरों पर हंसना बहुत अच्छा है, उनका अपमान करना, मज़ाक उड़ाना बहुत अच्छा है। पर सर्वत्र हारे हुए गधे, मेरे फेंके हुए पैसे के टुकड़े पर पलने वाले अर्दली कुत्ते, तूने कौन सा बड़ा मीर मार लिया था? गले में कोई पट्टा डले कुत्ते की तरह भागता रहा उसके पीछे। मोहल्ले के सामने जलील होने के बाद आज वो हंस रहा है जो तब चुप था। गन्दी नाली के नीच कीड़े, वक़्त बड़ा होता है, पर तूझे अभी और भुगतना है यह समझने के पहले।

अब इन पतितों का कहना ही क्या। इतना पढ़ के वो शर्मिंदा होंगे, ऐसा लगता है क्या? वो तो ऐसे है, कि इसके बाद भी शर्म मरने की बजाए कल फिर दांत दिखाते हुए आपके सामने खड़े हो जाएंगे नया झूठ लेकर, नया कटोरा ले कर। भिखारीश्रेष्ठ हैंं, यही करेंगे तीनों, और क्या।

शत्रुंजय

मीटू

आजकल मिटू चलन में है। कुछ दिन पहले एक अभिनेत्री अमेरिका से आयी और अपने साथ मिटू का तूफान ले आयी। जैसे चक्रवात अपने सामने आयी हर चीज़ उड़ा देता है, वैसे ही इस तूफान ने अच्छे-अच्छों को उड़ा दिया।

हर व्यक्ति आजकल दहशत में है, कि कहीं उसका मिटू न हो जाये। कुछ चुटकुले व्हाट्सएप पर आ रहे हैं, जैसे कि जो कल तक आपकी स्वीटु थी, हो सकता है वो आज आपकी मिटू हो जाये या फलां व्यक्ति मृत्यु के बाद अपने पीछे एक पत्नी, दो बच्चे व पचास मिटू छोड़ गए, इत्यादि।

आलम यह है, कि रोज़ एक मिटू का बम फूटता है, और रोज़ कोई घायल हो जाता है। कुछ केस असली होंगे, कुछ ऐंवेंई। इतने नाम आ गए है कि सड़क पर कोई घूमता दिखे तो लगता है यह भी मिटू का केस है।

डर तो ऐसा मेरे अंदर भी ऐसा समाया है कि दो दिन पहले जब मैं मॉल गया तो सब लड़कियों से दूर-दूर ही चला। जब एक से टकराया तो सबसे पहले यह देखा कि यह कोई लड़की तो नहीं, शांति मिली कि आदमी था। भई, आज कुछ न हो, पर कल ट्वीटर पर आपका नाम ट्रेंड हो जाये, कि यह रहा एक और हवस का पुजारी। गलत तरीके से छुआ। झूठे केस तो वैसे भी थोक में मिलतें है। नज़र हटी दुर्घटना घटी। इसलिए हम संभल के चले। ज़माना वैसे भी खराब है। पुलिस सवाल बाद में पूछेगी, पहले अंदर कर देगी। मुफ्त की पब्लिसिटी मिले सो अलग।

मिटू तो साब ऐसा छाया कि जो लड़कियाँ-औरतें मिटू पर बड़ी-बड़ी बातें कर रहीं थी, उनके घर में ही मिटू निकल आया। और अब उनके यहाँ लंबी चुप्पी छायी हुई है। एक शब्द नहीं। नीरव(जिसमे रव न हो, मोदी नहीं)।

पूरा बॉलीवुड इस मिटू के चपेट में आ गया है। अब तक सिर्फ बारिश ही ऐसी चीज़ थी जो मुम्बई में तहलका मचाती थी, अब मिटू भी शुरू हो गया। बीएमसी भी अब क्या करे। फिर मिटू आया राजनेताओं पर। एक विदेश मामलों से जुड़े मंत्री साहब पर भी मिटू लग गया। उन्होंने मानहानि का दावा ठोक दिया। नेताजी ने इस्तीफा दे दिया। जिन्होंने आरोप लगाए उन्होंने कहा कि यह उनकी नैतिक जीत है। हैं?

नैतिक जीत भी आजकल बहुत होती है। यूँ कोर्ट में शायद हार जाए, पर नैतिक जीत ले ली। एक पत्रकार महोदय तो कब तरह-तरह के व्यंजन खाते-खाते मिटू के शिकार हो गए, पता ही नहीं चला। कल तक दिल्ली की गलियों में देखते थे इन्हें, अब मिटू में देख रहें है। अब बस लोग उन्हें दुआ में याद रखें। गज़ब तरक्की की है।

बीस साल-तीस साल पुराने मामले निकल के आ रहे हैं। जवानी के जोश में आपने एक तोप चलाई तीस साल पहले, गोला अब आकर आपके ऊपर ही गिर रहा है। हाल यह कि 20 साल का नवयुवक हो या 70 साल का बुजुर्ग, सब अपने-अपने मिटू की चिंता में हैं। कब कहाँ से कोई मिटू टपक जाए। पता नहीं कौन सा गड़ा मुर्दा कब उखड़ जाए, और वे पूरी दुनिया के सामने एक्सपोज़ हो जाये। वैसे भी दुनिया ज़ालिम है, और सोशल मीडिया तो कटार है ही। कुछ नहीं भूलती।

हमारे यहाँ प्रधानमंत्री जी को एक रेडियो समझा जाता है। बटन घुमाओ और रेडियो चालू हो जाये। कहीं कुछ हो, प्रधानमंत्री को बोलना चाहिए। पहले राफेल कार्यक्रम चल रहा था, अब मिटू पर बोलो। बस बोलो। प्रधानमंत्री जवाब ही नहीं देते। तो लोग कहने लगे कि आप मिटू के विरोध में है।

इधर एक अंग्रेजी चैनल तो इस कोशिश में लगा है कि मिटू के आरोपी को सबसे पहले फाँसी दो, फिर आरोप सिद्ध करो। अच्छा हुआ न्याय व्यवस्था कोर्ट देखता है, नहीं तो यह चैनल ज़िल्लेइलाही हो गया होता। अब चैनल वाले एक-एक व्यक्ति को पकड़-पकड़ के पूछ रहे हैं कि उनकी क्या राय है मिटू पर, जवाब दिया तो ठीक, नहीं तो यह बाईट मिल जाये कि फलां नेता सवालों से बचता दिखा। अब आप तो हर किसी से सवाल पूछो, ये क्या बात हुई।

हमारे एक साथी ने एक लड़की को आई लव यू कहा, लड़की ने भी थोड़ा शरमाते हुए जवाब दिया मी टू। बस भाई को काटो तो खून नहीं। बहन-बहन कहते हुए राखी लेने दौड़े। पर मालूम पड़ा कि रक्षाबंधन तो गुज़र गया और अगले साल ही आएगा। अब वे ख़ौफ़ज़दा है।

पर असल बात यह है, कि इस मुहिम से उन लड़कियों की मुसीबत कितनी बढ़ेगी जो नौकरी करने बाहर जाती है? जिनके पास और कोई उपाय नहीं है? आपने ट्वीटर पर कुछ लिख दिया, और आप शायद मुक्त भी हो गए लिख के, पर सड़क पर कोई लड़की कभी फँस गयी, तो क्या उसकी मदद की जाएगी तब? लड़कियों को नौकरी देने पर भी विचार किया जाएगा, अगर मिल गयी, तो हो सकता है कि उससे दूर रहा जाये। गलत बात का विरोध होना चाहिए, करवाई भी होनी चाहिए, पर जब आप किसी के कंधे पर बंदूक रख कर चलाते हो, तो फिर आप पर भी उँगलियाँ उठती है। और इसकी गोली किसी का जीवन तबाह कर सकती है, इसलिए इसे बहुत सोच समझकर चलाएं तो ही अच्छा।

शत्रुंजय

सिलसिला-ए-प्रदर्शन

2018 प्रदर्शनों और धरनों का वर्ष है। प्रदर्शनों का सिलसिला जो चल निकला है वो खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। प्रदर्शन आज का फ़ैशन और ट्रेंड हो गया। प्रदर्शन न हुआ मानसून हो गया। 5 को इस राज्य में है, 10 को उस राज्य में पहुँचेगा, 15 को तिस राज्य में। आलम यह है कि मानसून की बारिश उतने राज्यों में नही हुई जितने राज्यों में प्रदर्शन हो गए। उतनी मिलीमीटर बरसात न हुई, जितने किलोमीटर के प्रदर्शन हो गए।

फिलहाल हमारे मध्य प्रदेश में एक प्रदर्शन चालू हुआ है, जो बिहार होते हुए उत्तर प्रदेश पहुँच गया है। प्रदर्शन एक रेल गाड़ी हो गया है, इंदौर से रात को चली और अगली दोपहर इलाहाबाद पहुँच गयी। हमारे एक मित्र ने एक व्हाट्सएप भेजा, प्रदर्शन के पक्ष में था, उसमें फारवर्ड करने का निवेदन था, सो हमने कर दिया। और इसी पर लिखने का मन हो गया।

तमिल नाडु में प्रदर्शन हो रहा है कर्नाटक के खिलाफ, कर्नाटक में तमिल नाडु के खिलाफ। दिल्ली में हरियाणा के खिलाफ प्रदर्शन, हरियाणा में दिल्ली के खिलाफ। बंगाल में प्रदर्शन, गुजरात में प्रदर्शन।

आज दसों दिशाओं से प्रदर्शन की ख़बरें आ रही है। जाति पर, आरक्षण पर। लेफ्ट प्रदर्शन कर रहा है, राइट प्रदर्शन कर रहा है, सेन्टर प्रदर्शन कर रहा है। कांग्रेस का भाजपा के खिलाफ प्रदर्शन तो भाजपा का कांग्रेस के खिलाफ। आम आदमी पार्टी का दोनों के खिलाफ प्रदर्शन। सोमवार को इस बात पर प्रदर्शन, मंगलवार को उस बात पर प्रदर्शन। सातों दिन प्रदर्शन। बारहों महीने प्रदर्शन। सड़क पर प्रदर्शन, ट्विटर पर प्रदर्शन। जहाँ न पहुँचे रवि, वहाँ पहुँचे प्रदर्शन, कवि भी पीछे रह गए। हाल यह है, जितने मुद्दे नहीं है, उतने तो प्रदर्शन है।

एक आम आदमी सुबह उठता है, अखबार पढ़ता है, चाय पीता है, नहा-धो कर काम पर चला जाता है। प्रदर्शनकारी भी यही करता है। पर वो काम पर नहीं जाता। वो प्रदर्शन पर निकल जाता है। दस से दो इस चौराहे पर प्रदर्शन है, तीन से छह दूसरे चौराहे पर प्रदर्शन। बीच में लंच-सपर। बड़ा बिजी शेड्यूल होता है। कुछ प्रदर्शनकारी तो ऐसे भी होते है जो एक दिन एक के विरोध में प्रदर्शन करते है और दूसरे दिन विरोधी के पक्ष में हो कर पहले के खिलाफ प्रदर्शन करते हैं।

धरनों का तो कहना ही क्या। किसने नहीं किया धरना? एक राज्य के मुख्यमंत्री ने तो धरनों को वो ऊचाईयाँ दी है, जो पहले उसे कभी हासिल न थी। उन्होंने तो अपने गुरु को भी मात कर दिया इस में।  

अमेरिका में तूफान आते है, हमारे यहाँ आंधी आती है। प्रदर्शनों की। आती है और सब खत्म कर जाती है। पीछे छुटता है जलती हुई गाड़ियाँ, टूटे हुए कांच, लूटी हुई दुकानें, बर्बाद हुए घर। हज़ारों करोड़ों का नुकसान। अपना नहीं है तो तोड़ दो, फोड़ दो, जिसका नुकसान हुआ वो जाने। हमारा क्या था। हुँह। शांतिपूर्ण प्रदर्शन कब अपने सामने आई हुई चीजों को राख कर देगा, कह नहीं सकते। शुरू शांतिपूर्ण होते है, पर धारा १४४ लगा जातें हैं। फिलहाल हमारे मध्य प्रदेश में सभी जगह यह धारा लगी थी। फ्लैग मार्च हो रहा था जगह-जगह।

एक होता है भारत बंद। भारत बंद तो अब रविवार की छुट्टी जैसा हो गया है। हर हफ़्ते आता है। एक भारत बंद गुज़रा पिछले हफ़्ते, एक भारत बंद आ रहा है अगले हफ़्ते। असल में दूध की नदियाँ इन बंद के दौरान ही मुझे देखने को मिली। हमारे पूर्वजों ने जो सपना तब देखा था, उन्हें उनकी संतति आज पूरा कर रहें है। सड़कों पर जगह-जगह दूध की नदियाँ बह रही है। ट्रक जला दिया तो क्या, दूध की नदियाँ भी तो बहायी है हमने। कभी एक समाज बंद करवाता है, कभी दूसरा। राजनैतिक पार्टियाँ तो बंद करवाती है ही। दो दिन बाद एक और भारत बंद है। और अगर इसमें आपने साथ नहीं दिया, तो मार-पीट की जाती है, धमकी दी जाती है। राजनेता, एक्टिविस्ट भी आ जाते है अपना प्रिय काम करने, हाथ सेेंंकने। हर आदमी दूसरे से ज्यादा प्रदर्शन करने में लगा है। यह तो अच्छी बात है, कि अभी घर-घर में प्रदर्शन शुरू नहीं हुआ। मालूम पड़े, कि 10 साल के मुन्ना ने प्रदर्शन शुरू कर दिया है कि उसपर होमवर्क करने का दबाव डाला जा रहा है। उसके माता-पिता उस पर ध्यान नहीं दे रहे है। वो अनशन पर बैठने की धमकी दे सो अलग विषय।

प्रदर्शन की एक ख़ासियत है। कभी सही कारणों पर नहीं होता। हर साल बारिश होती है, हर साल बाढ़ आती है, हर साल नुकसान होता है। पर कोई प्रदर्शन नहीं। गर्भवती स्त्री के पेट पर लात मार कर उसके बच्चे को मार देने वाले के खिलाफ प्रदर्शन नहीं होता। चिकित्सा व्यवस्था बिगड़ी हुई है, उसपर प्रदर्शन नहीं होता। जनसंख्या पर प्रदर्शन नहीं होता है। होगा तो उस पर जिसमें अपना स्वार्थ हो। यही होता आया है, यही होता रहेगा।

शत्रुंजय

कंपनी के भिखारी

हाय क्या तड़प थी। ज़ुबान पर न आ रही, पर अंदर से चबा रही। लड़के ने काम का क्या मना किया, नौकरी छोड़ने की क्या बात कही, हाय हम सह न सके। ‘हम तो तुमको रखना ही नहीं चाहते थे’। बिल्कुल सही बात। सौ फीसदी खरी। तभी एक दिन सुबह 8 बजे बुला लिया, भले ही समय 10 बजे का हो। तभी रात को कभी 12, तो कभी 1, कभी सुबह के 4 या सुबह 6 बजे छोड़ना। तभी कहा जाता था कि हम नहीं चाहते की तुम कंपनी छोड़ो, तुम यहाँ बड़े महत्वपूर्ण हो। क्या तारीफें की थी तब। रखना ही नहीं चाहते थे, इसीलिए तो था यह सब।

तड़प तड़प के इस दिल से आह निकलती रही, ऐसा क्या गुनाह किया कि लुट गए। लगता है यह गाना इन के लिए ही बना था। पर मुँह पर फिर भी न आ सकी दिल की बात। कहना चाहते थे कि मत छोड़ो, पर मुँह से निकला ठीक है, हम तो रखना ही नहीं चाहते थे।

फिर निकला असली रूप। किया तो आईआईटी, पर बने भिखारी। लड़के ने भी पहली बार देखा कि कंपनी में भी भिखारी होते है। वो भी उस कंपनी का सीइओ। कंपनी क्या, कल की शुरू हुई स्टार्टअप है। घर की कंपनी, तो हम ही सीइओ, हम ही एमडी, हम ही एडमिन। काम टेक्नोलॉजी और राजनीति का मिलाजुला, पर न टेक्नोलॉजी समझ आई न राजनीति। लेकिन भीख में पीएचडी। शब्द तो दिल को खुश करने वाले। मैं तो छमिया हूँ, जो पैसे देगा उसके लिए नाचूँगा। अब कैसे बताये की नाचती तो तवायफ भी है, तो क्या खुद को तवायफ कहोगे। पर न छमिया हुए हम न तवायफ, हुए तो हम भिखारी। वो भी उच्च कोटि के।

चलिए और सुनते हैं। मैं बहुत खराब आदमी हूँ। यह तोे सिद्ध करके भी बताया। आईआईटीयन है भाई। जो करते है खरा करते है। ऊचांई पर जाएंगे तो बहुत ऊंचे, नीचता पर उतरे तो इतने की उसका भी कोई सानी नहीं। वैसे तो उस लड़के के जीवन मे कई आईआईटीयन आये थे। सब ऊंचे पहुँचे हुए। आज उसकी मुलाकात उससे हुई थी जो इतना नीचे उतरेगा की राक्षस भी शरमा जाए। ग़ुलाम भी एक पाल रखा था। वफादारी में तो वो कुत्ते से भी जीत गया। आखिर कंपनी में सीटीओ बनाया था। जूते उतने ही पड़ते थे ग़ुलाम जी को, पर स्वाभिमान कहाँ होता है ग़ुलाम का। तलवे चाटने का बोल दो बस, हरदम तैयार।

धमकियाँ तो वाह, क्या कहने! कॉलेज बंद करा दूंगा, यहाँ का कलेक्टर भी मुझसे ऐसे बात नहीं कर सकता। ये बात अलग है, कि न कोई कॉलेज बंद करवाया होगा न किसी कलेक्टर ने मुँह लगाया होगा कभी। एक पार्टी के उपाध्यक्ष को डिबेट की चुनौती दी, तो उस पार्टी के प्रवक्ता ने आकर बड़े प्यार से कहा कि जो डिबेट करनी है वो चुनाव आयोग से करो जाके। जलवे हैं भाई सीईओ साब के। भगवान भी कम हैं इनके सामने। मैं यह कर दूंगा, में वो कर दूंगा, मैं ऐसा कर दूंगा, मैं वैसा कर दूंगा, लगा कि आज वाकई छमिया बनके नाच दिखा रहे हैं सीईओ साब। बहुत बड़े-बड़े दुश्मन है मेरे यहाँ। लोगों के बड़े-बड़े पहुँचे हुए दोस्त होते है, इन के दुश्मन है। गुंडे इनके नीचे काम करते है, वो अलग बात है कि एक चौकीदार का ठेकेदार नीचे इनको धमकी और गालियाँ दे गया था क्योंकि होली के एक दिन पहले तक इन्होंने उसको पैसे नहीं दिये थे। पर धमकियाँँ इतनी की, फेहरिस्त बन जाये। बना भी दी। जो इनके लिये जान दे उसी से नाराजगी। जो जूते मारे उसको अपना मानते होंगे।

गालियाँ तो भाई इनकी पूछो ही मत। लड़की हो या लड़का, हम तो बेशर्म है। बाहर सफाई की बात करेंगे, पर अंदर जो कूट कूट के गंदगी भरी हुई है उसका कुछ नहीं। हम तो गालियां देंगे। प्रोग्रेसिव लोग है हम, लड़के-लड़की में भेद नहीं करते। अपनी गंदगी समान रूप से दोनों के सामने प्रकट करेंगे। जितनी इज़्ज़त कमाई थी इन दो-तीन महीनों में, हमने सारी गंवा दी, पर हम महान हैं।

झूठ बोलेंगे, पर मजाल की कोई हमें झूठा कह दे। रविवार को काम कराने का क्या अनूठा तरीका अपनाया था। राजस्थान के सीएम का फ़ोन आया है हमें, बुधवार तक उन्हें प्रोजेक्ट पूरा चाहिए, अब आज शनिवार है, अगर आज से काम करो तो 5 दिन है, सोमवार से करो तो 3 दिन, फैसला आपका। आहा। इनके लिए रविवार की छुट्टी कुर्बान की, होली-रंगपंचमी को बैठा, पर यह थोड़ी गिनना! हैं बिल्डिंग की तीसरी मंजिल पर, पर पूरी बिल्डिंग हमारी है। सामने वाला तो अंधा है, उसे थोड़े ही पता, कि तीसरी मंजिल हमने ली ही इसीलिए क्योंकि वो सस्ती पड़ती है। नीचे फ्लोर पर भले ही ताले लगें हो, नोटिस लगा हो, पर पूरी बिल्डिंग के मालिक हम है। दिल्ली के मुख्यमंत्री भी कम है यहाँ। मोजे जर्मनी के पहनते है, पहले बंदे मिलें है जो हिंदुस्तान के बाहर गए नहीं, पर मोजे जर्मनी से खरीदते हैं। और फूलन देवी चाची है इनकी। अब आप भोपाल के पास के, फूलन चम्बल की। उस लड़के के मन में आया कि कह दे कि इतनी भी न फेंंको की लपेटना मुश्किल हो जाये। पर फेंंके जा रहे आईआईटीयन।

कुछ बड़ा कर रहे है ये। और इतना बड़ा कर रहे है, कि अभी तक हो ही रहा है। पता नहीं कितना बड़ा कर रहे हैं। काम तो ऐसा कि जैसे पूरी दुनिया को प्रोजेक्ट यह ही दे रहे हैं। और ऐसा टॉप सीक्रेट, कि रॉ भी कुछ नहीं। हाँ, पर बताओ सबकोे। फैलाओ इस टॉप सीक्रेट काम को। ट्वीट करो, रिट्वीट करो, भाई विदेश में है तो उसे बोलो, उसकी पत्नी को बोलो, नहीं तो तुम गद्दारी कर रहे हो। दिल खुश हो गया।

न्याय में तो ज़िल्लेइलाही को भी मात कर दे। बात कहने का अवसर देते है, पर करना वही जो सोच लिया। हम ही सही है और कोई नहीं। गजब की है न्याय व्यवस्था! सामने वाला कंपनी तोड़ रहा है। वाह! मतलब हममें ये काबिलियत नहीं कि हम लोगों को कंपनी छोड़ने से रोक सके, पर कोई कंपनी छोड़ने की बात करे तो तेरी वजह से हुआ ये। हमारी कोई गलती नहीं। हम असफल हुए तो तू जिम्मेदार है, भले गोबर किया हमने हो।

भीख तो क्या अदा से मांगी कि सड़क का भिखारी भी कहीं न लगे। इसको जीन्स दिलाओ, उसे जीन्स दिलाओ, वाशिंग मशीन हमें दे देते, कंपनी को डोनेशन दो। 2 लाख के लैपटॉप से चले थे, 1000 की सेकंड हैंड वाशिंग मशीन पर आ गए। पर्स से पैसे निकाल लिए। कुल मिला के जो भी हो, हमें दो, हम महाभिखारी है। उस दिन उस लड़के को पक्का हो गया कि वो वाकई राजा है। उसकी नज़रों में, जितना गिर सकते थे, उससे कहीं ज्यादा नीचे गए। आईआईटीयन है। ज्यादा ही करने की आदत होती है। नीचता में भी आउट ऑफ बॉक्स थिंकिंग होती है, उसका यह विरला ही उदाहरण देखा उसने। कहाँ तो वो करियर बनाने आया था कहाँ यह नरक मिल गया। कहाँ तो उन्हें तनख्वाह देनी थी, कहाँ खुद नंगे हो गए सबके सामने। तड़प रहें है, नज़रों से नीचे गिर रहे हैं, पर भ्रम है कि मज़े ले रहे हैं। तड़प बड़ी है। जीवन के रंग है। देवता भी है यहाँ, इस जैसा घिनौना व्यक्त्वि भी। अगर नीचताओं का कोई चक्रव्यूह होता, तो ये उसके सातवें घेरे में खड़े होने वाले महारथी होते।

उस लड़के को उस दिन जीवन के ऐसे-ऐसे रंगों के दर्शन हुए कि क्या बतायें। वो तो शब्द कम पड़ गए, नहीं तो इनके तारीफ़ों के बहुत बड़े-बड़े पुल खड़े हो जाते। पर चलिए फिर कभी।

शत्रुंजय

When You Let Others Grow, You Grow

Recently, I visited a company for an interview. But, instead of asking questions about what I did or what I know, he went to ask questions related to that field, about which I have relatively less knowledge. When HR told me before, that they will provide me 6 months training, this guy refused in totality. First I thought I need to work more on my skills, but when brooding, I came on to conclusion that this guy became insecure looking at my profile. Though, I want to work for my own self, improving myself, I don’t have any intentions to usurp other people’s position, but insecurities just creep in to them.

In 2010, when I was working in a firm, the immediate boss was insecure with me. I was a BE in Comp Sci then & he was from Polytechnic. So he never use to gave me work, on the other hand tried to persuade me to join other company. He kind of harassed me then and I have to left the job, but went to take higher studies doing my MSc in same.

Why I am writing this? I am writing it because the lesson, which I learned over the years is that, if you want to grow, you have to focus on yourself. This means, even if others are surpassing you. Let me give you an example which I created myself. There is a staircase. You are going upwards. There is another person who is behind you. He too is going in same direction. Now, you have two options. If you stop & try to block the way of that person behind you, he cannot go upwards. But so are you. To stop him, you have to remain where you are. But the drawback is, if he go back downstairs & take a lift, then? He reached where he intended & you didn’t achieved what you wanted, but moreover, fallen from his and other people’s eyes.

In another scenario, you go on your way, reach where you wanted, without blocking other’s path, having your respect intact or even increased. This things help you grow.

So, this is the lesson, when you let other’s grow, you grow. This also takes a lot of stress off your head, because here, you have to focus only on yourself. And believe me, if you are good at something, nobody can take that. So don’t be insecure, just be happy. 🙂

Shatrunjay

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